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देवता: इन्द्र: ऋषि: वसिष्ठः छन्द: बृहती स्वर: मध्यमः

त्वं सू॑क॒रस्य॑ दर्दृहि॒ तव॑ दर्दर्तु सूक॒रः। स्तो॒तॄनिन्द्र॑स्य रायसि॒ किम॒स्मान्दु॑च्छुनायसे॒ नि षु स्व॑प ॥४॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

tvaṁ sūkarasya dardṛhi tava dardartu sūkaraḥ | stotṝn indrasya rāyasi kim asmān ducchunāyase ni ṣu svapa ||

पद पाठ

त्वम्। सू॒क॒रस्य॑। द॒र्दृ॒हि॒। तव॑। द॒र्द॒र्तु॒। सू॒क॒रः। स्तो॒तॄन्। इन्द्र॑स्य। रा॒य॒सि॒। किम्। अ॒स्मान्। दु॒च्छु॒न॒ऽय॒से॒। नि। सु। स्व॒प॒ ॥४॥

ऋग्वेद » मण्डल:7» सूक्त:55» मन्त्र:4 | अष्टक:5» अध्याय:4» वर्ग:22» मन्त्र:4 | मण्डल:7» अनुवाक:3» मन्त्र:4


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे गृहस्थ ! जिस (सूकरस्य) सुन्दरता से कार्य करनेवाले (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्यवान् (तव) तुम्हारे (सूकरः) कार्य को अच्छे प्रकार करनेवाला (दर्दर्तु) निरन्तर बढ़े (त्वम्) आप (रायसि) लक्ष्मी के समान आचरण करते हो और जो सब को (दर्दृहि) निरन्तर उन्नति दें अर्थात् सब की वृद्धि करें (स्तोतॄन्) स्तुति करनेवाले विद्वान् (अस्मान्) हम लोगों को (किम्) क्या (दुच्छुनायसे) दुष्ट कुत्तों में जैसे वैसे आचरण से प्राप्त होते हो, उस घर में सुख से (नि, सु, स्वप) निरन्तर सोओ ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे गृहस्थ ! आप ऐश्वर्य का संचय कर, धर्म व्यवहार में अच्छे प्रकार विस्तार कर और विद्वानों का सत्कार कर श्रीमानों के समान आचरण करो, हम लोगों के प्रति किसलिये कुत्ते के समान आचरण करते हैं, नीरोग होते हुए प्रति समय सुख से सोओ ॥४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे गृहस्थ ! यस्य सूकरस्येन्द्रस्य तव सूकरो दर्दर्तु त्वं रायसि यत् सर्वान् दर्दृहि स्तोतॄनस्मान् किं दुच्छुनायसे तत्र गृहे सुखेन नि सु स्वप ॥४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (त्वम्) (सूकरस्य) यः सुष्ठु करोति (दर्दृहि) भृशं वर्धय (तव) (दर्दर्तु) भृशं वर्द्धताम् (सूकरः) यः सम्यक् करोति (स्तोतॄन्) विदुषः (इन्द्रस्य) परमैश्वर्यस्य (रायसि) रा इवाचरसि (किम्) (अस्मान्) (दुच्छुनायसे) (नि) (सु) (स्वप) ॥४॥
भावार्थभाषाः - हे गृहस्थ ! त्वमैश्वर्यं संचित्य धर्मे व्यवहारे संवीय विदुषः सत्कृस्य श्रीमानिवाचरास्मान् प्रति किमर्थं श्वेवाचरति नीरोगस्सन् प्रतिसमयं सुखेन शयस्व ॥४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे गृहस्थांनो! तुम्ही ऐश्वर्याचा संचय करून धर्मव्यवहारात चांगल्या प्रकारे वागून विद्वानांचा सत्कार करा व श्रीमान लोकांप्रमाणे वागा. आमच्याबरोबर (सर्वांबरोबर) कुत्र्यासारखे आचरण का करता? निरोगी बनून प्रत्येक वेळी सुखाने झोपी जा. ॥ ४ ॥